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नया सवेरा

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आज खुश है दिल की ज़ख़्म सहलाने का वक़्त आया है कई  मुद्दतों बाद मरहम लगाने का वक़्त आया है बहुत बड़ा और लंबा फासला तय किया है रास्तों ने तब जाकर मंज़िलों पर छाने का वक़्त आया है छोटे और बारीक पर्दों के दरम्यान बहुत रो लिए अब अश्क बहाने को शामियाने का वक़्त आया है मेरी बेहतरी के लिए मेरे बड़ों ने मुझे कई बार टोका अब उन्हे अपने खून पर इतराने का वक़्त आया है गैर ज़रूरी थे कुछ लम्हात जो हम यूँ ही भटकते रहे अब वक़्त के साथ कदम मिलने का वक़्त आया है शामें धुंधली थी और दिन भी खामोश थे चलो अब तो दीपक जलाने का वक़्त आया है मैं परेशान था ये तो लाजिमी है दोस्तों तभी  बुरे दौर मे परेशानी का वक़्त आया है बड़े दिनों बाद खुली हवा मे साँस ले रहा हूँ ज़िंदगी मे अब सपने सजाने का वक़्त आया है बहुत देख ली रातों की काली दिशाएं मैने अब निगाहों को एक नया सवेरा दिखाने का वक़्त आया है   राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'