Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2013

नया सवेरा

आज खुश है दिल की ज़ख़्म सहलाने का वक़्त आया है कई  मुद्दतों बाद मरहम लगाने का वक़्त आया है बहुत बड़ा और लंबा फासला तय किया है रास्तों ने तब जाकर मंज़िलों पर छाने का वक़्त आया है छोटे और बारीक पर्दों के दरम्यान बहुत रो लिए अब अश्क बहाने को शामियाने का वक़्त आया है मेरी बेहतरी के लिए मेरे बड़ों ने मुझे कई बार टोका अब उन्हे अपने खून पर इतराने का वक़्त आया है गैर ज़रूरी थे कुछ लम्हात जो हम यूँ ही भटकते रहे अब वक़्त के साथ कदम मिलने का वक़्त आया है शामें धुंधली थी और दिन भी खामोश थे चलो अब तो दीपक जलाने का वक़्त आया है मैं परेशान था ये तो लाजिमी है दोस्तों तभी  बुरे दौर मे परेशानी का वक़्त आया है बड़े दिनों बाद खुली हवा मे साँस ले रहा हूँ ज़िंदगी मे अब सपने सजाने का वक़्त आया है बहुत देख ली रातों की काली दिशाएं मैने अब निगाहों को एक नया सवेरा दिखाने का वक़्त आया है   राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'