सिलसिला
राहों का क्या है गुज़रती रहेंगी सवाल-ओ-ज़हन भी तो रुकता नहीं है सितारों से छुपकर कहाँ जा रहा है फलक का ये मौसम चला जा रहा है तलाशा बहुत है कि मिलता नहीं है ये खिलती सुबह का नज़ारा तो देखो यूँ जीवन से नज़रें मिलकर तो देखो कहीं पर कोई राज़ छुपता नहीं है दीवारें भरी है दरारों से लेकिन संभलना वहां पर तो फिर भी है मुमकिन यूँ ज़र्रों का गिरना भी चुभता नहीं है ये दुनिया तो कितने सवालों भरी है मेरे सामने कितनी मुश्किल पड़ी है ये क्या सिलसिला है कि रुकता नहीं है राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'