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Showing posts from July, 2019

ढले सच के सांचों में तो....

ढले सच के सांचों में तो उभर गए वक़्त रहते हम खुद सुधर गए रही सांस बाकी अब सुकून होगा तकलीफ के दिन अब गुज़र गए उम्मीद थी कि वो बड़ा ज़हीन है बेवकूफी की और दिल से उतर गए ये गनीमत है कि हालात ठीक हुए और ज़िन्दगी के मसले सुलझ गए  उसकी दोस्ती का पैमाना मोहब्बत है और देखते ही देखते हम संवर गए मैं सड़क पर कंकरों को उठाता हूँ ये सोचकर कि  यहाँ रास्ते निकल गए हंसी का भी अपना एक स्वाद होता है शहद के मर्तबान जैसा निखर गए  चोट तो ज़िन्दगी का हिस्सा रहेगी दर्द के किस्से अब उखड गए राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'