बेपरवाह
बेपरवाह है मिज़ाज और दिल सुस्त हो गया कौन है जो यहाँ पर पूरा दुरुस्त हो गया अर्श से फिसलता एक ज़र्रा चाँद का ज़मीं पर न जाने कहाँ खो गया बगैर हाथ उठाए दुआएं मांगता हूँ तहज़ीब और सलीका कहाँ छोड़ गया जागने इंतज़ार में है के सुस्त आँखें सोचते सोचते मैं फिर से सो गया एक ठण्डी छाँव लम्हो को सजाती है और एक धधकता पल मौत को हो गया किश्ते हैं सांसों की जो बची है आस-पास ज़िन्दगी को कबसे ये धोखा हो गया हर जगह धूल का समंदर फैला है साफ़ मौसम न जाने कहाँ खो गया -राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'