थमे तुम जिस जगह ....
थमे तुम जिस जगह पर वहां भी रास्ता निकलता है मगर तुम कदम आगे बढ़ा नहीं पाए मैने तो ईंट पत्थर इकट्टा कर लिए थे तुम ही मेरा घर बना नहीं पाए क्या त्योहार , क्या खुशी, अब पता नहीं चलती हम अपना आंगन दियों से सजा नहीं पाए दर्द भी सीने में जज्ब कर रखे हैं कोई कितना भी पूछे पर बता नहीं पाए बहुत कोशिश की लोगों ने भटकाने की पर मुझे अपने इरादों से डिगा नहीं पाए जमाना मुझे कोसने गिराने के लिए खड़ा था पर हिम्मत है कि वो गिरा नहीं पाए रोज यहां पर जुल्म होता है बेधड़क उस से लड़ने की हिम्मत हम दिखा नहीं पाए रहने को तो कुत्ता भी आदमी के साथ रहता है पर इंसान ही इंसान से दिल लगा नहीं पाए राजेश बलूनी प्रतिबिंब