दबी हुई साँसों में.............
दबी हुई साँसों में अब सिहरन सी होती है ये कौन सी राहें हैं जिनमे अड़चन सी होती है गुज़र रही है ज़िन्दगी जैसे दिन गुज़र रहा है बाकी सारी यादें तो अब बचपन सी होती हैं कहाँ होते है नए ख्वाब? कहाँ होती है नई बात? मेरी तमन्ना तो अब पुरानी उतरन सी होती है मेरा अक्स भी न जाने कहाँ भटक रहा है उसकी मौजूदगी अब टूटे हुए दरपन (दर्पण) सी होती है बहुत सारे शोर के बाद थोड़ी ख़ामोशी ठहरी थी अगले ही पल कोई आवाज़ टूटे हुए बर्तन सी होती है मुझसे नहीं सुलझते हैं ये शिकायती मसले आजकल बस मन के बसेरे में एक उलझन सी होती है कई शामियानों,कई चादरों,कई पर्दों से शहर ढक गया मेरे हिस्से में तो एक पुरानी कतरन सी होती है बेवजह जीना भी तो मुनासिब नहीं रह गया है ज़िन्दगी भी अब देखो टूटी धड़कन सी होती है वैसे तो मौत आने में शायद अभी वक़्त है मगर जीने की आरज़ू भी तो जबरन सी होती है राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'