नकली ज़िंदगी
दुनिया मे चकाचौंध अजब नहीं है |
मुख़ौटे ओढना यहाँ ग़लत नहीं है |
तुझे भी पसंद नहीं सादगी तो छोड़ो |
तू भी दुनिया से कुछ अलग नहीं है |
वो नकली ज़िंदगी का हवाला देते हैं |
पर मेरी सच्चाई का मुझमे बस नहीं है |
क्या शानो -शौकत जब ज़मीर ही खोखला है |
लगता है तुम्हे ज़िंदगी की परख नहीं है |
मैं तो रहूँगा हमेशा ऐसे ही खालिस |
तुझे मैला रहने से फ़ुर्सत नहीं है |
कद्र नहीं होती यहाँ भोलेपन की देख लो |
चालबाज़ी कर लूँ ऐसी शख्सियत नहीं है |
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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