Tuesday, January 24, 2017

नकली ज़िंदगी


दुनिया मे चकाचौंध अजब नहीं है 
मुख़ौटे ओढना यहाँ ग़लत नहीं है    
तुझे भी पसंद नहीं सादगी तो छोड़ो 
तू भी दुनिया से कुछ अलग नहीं है 
वो नकली ज़िंदगी का हवाला देते हैं 
पर मेरी सच्चाई का मुझमे बस नहीं है 
क्या शानो -शौकत जब ज़मीर ही खोखला है
लगता है तुम्हे ज़िंदगी की परख नहीं है 
मैं तो रहूँगा हमेशा ऐसे ही खालिस
तुझे मैला रहने से फ़ुर्सत नहीं है 
कद्र नहीं होती यहाँ भोलेपन की देख लो
चालबाज़ी कर लूँ  ऐसी शख्सियत नहीं है

राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'  

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