कोई गीत नहीं बचा है......
यूँ ज़िन्दगी से कुछ सीख नहीं सका
कि टूटते रिश्तों की डोर खींच नहीं सका
ऐसा नहीं कि ज़िन्दगी का साज़ बेसुरा
बस मेरे पिटारे में कोई गीत नहीं बचा
कई नग़मे लिख चुका हूँ क़दमों की ताल पर
अब थिरकते पांवो के लिए संगीत नहीं बचा है
राहगीर आता है घर में लौटकर तो देखता है
घर में इंतज़ार को मनमीत नहीं बचा
बाज़ियां बहुत खेली मैंने और एक सिरे तक पहुंचा भी
बहुत मशक्कत के बाद भी मैं जीत नहीं सका
कुछ अंकुरित फुलवारी रही थी कभी यहाँ
मगर अब सहरा में कोई बीज नहीं उगा
परेशां मैं हूँ कोई बात नहीं है मेरे यार
पर मेरे लिए तेरा उदास होना ठीक नहीं लगा
तूफ़ान भी आया बवंडर भी आया
इतना बड़ा समंदर भी आया,पर दीप नहीं बुझा
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
कि टूटते रिश्तों की डोर खींच नहीं सका
ऐसा नहीं कि ज़िन्दगी का साज़ बेसुरा
बस मेरे पिटारे में कोई गीत नहीं बचा
कई नग़मे लिख चुका हूँ क़दमों की ताल पर
अब थिरकते पांवो के लिए संगीत नहीं बचा है
राहगीर आता है घर में लौटकर तो देखता है
घर में इंतज़ार को मनमीत नहीं बचा
बाज़ियां बहुत खेली मैंने और एक सिरे तक पहुंचा भी
बहुत मशक्कत के बाद भी मैं जीत नहीं सका
कुछ अंकुरित फुलवारी रही थी कभी यहाँ
मगर अब सहरा में कोई बीज नहीं उगा
परेशां मैं हूँ कोई बात नहीं है मेरे यार
पर मेरे लिए तेरा उदास होना ठीक नहीं लगा
तूफ़ान भी आया बवंडर भी आया
इतना बड़ा समंदर भी आया,पर दीप नहीं बुझा
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
Comments
Post a Comment