Posts

Showing posts from June, 2013

यूँ भी तो कभी.........

Image
यूँ भी तो कभी रंग उड़ जाएँ ये सोचता हूँ अपने पलटते ख्वाबों को यूँ ही मोड़ता हूँ चहलकदमी भरी है गलियों के बरामदे मे और खिड़कियों को भी करीने से खोलता हूँ मेरी लिखावट से एक दरिया चेहरों पर बह गया इसीलिए अपनी बेरहम कलम को तोड़ता हूँ इन यादों की मियाद कब तक रहेगी नहीं जानता फिर भी दिन ब दिन इन्ही के बारे मे सोचता हूँ अभी अभी ताज़ा ज़ख़्म है कहीं सूख ना जाए इसे ज़िदा रखने के लिए रोज़ ही खरोचता हूँ बिना स्याही से लिखी है इस तरह अपनी दास्तान कि काग़ज़ के टुकड़ों को भी पढ़ने के लिए जोड़ता हूँ बह रहे हैं तो बहने दो आख़िर इनका मौसम जो है मैं आजकल नज़रों से बहता सैलाब नहीं पोंछता हूँ मेरे लिए ज़िंदगी ने कई रास्तों पर सुराख किए हैं फिर भी मैं कभी अपनी हिम्मत नहीं छोड़ता हूँ कितनी दीवारों के दरम्यान कई शीशों की दरार हैं उन्ही मे मैं अपना चेहरा देखकर बोलता हूँ लगे हाथ कुछ कामयाबी मिली है तो सिर पर चढ़ ना जाए इसी डर से कभी कभी अपना सिर भी फोड़ता हूँ यूँ ना रात की आवारगी जीने देगी मुझे अब कहीं इसीलिए दिन मे ही सोने के लिए चादर ओढ़ता हूँ राजेश बलूनी'प्रतिबिम्ब&

हे हिमालय ........

Image
हे हिमालय इस धरा तुम सा प्रहरी कौन है तुम हो स्थिर देख सब कुछ हम समझते मौन हैं आज ये परिदृश्य है कि तुम यूँ क्रोधित हो गए नीर नयनों से बहाकर हमको विचलित कर गए मूढ़ता है कि मानव तुम सरीखा बन रहा थोथली विकासधारा को ये तुम पर थोपता आओ मानव तुम निस्संदेह हो बड़े महान लेकिन गर रहोगे तुम अनैतिक , लुप्त होंगे सबके चिन्ह तुमको फुर्सत मिल नहीं रही राजसत्ता के भंवर में भूल कर दायित्व अपने चल पड़े अपने सफ़र में धारा अवगत है तुम्हरी नीचता प्रमाण से देखो अब तुम रो रहे हो अपनों के अवसान से तुम अगर जो अपनी आकांक्षा की परिधि तोड़ते ना यूँ ना अपने सिर को गंगा के तटों पर फोड़ते ना ये तो ईश्वर जानता है संसृति की दुःख  राग बेला आज देखो साथ में सब , कल रहेगा हर अकेला आ गया है अब समय भी रोक कर अपनी ये हठ तुम यूँ न पूरे वन भूषण को मत करो अम्बर में गुम वाह! मेरी सरकार देखो क्या परीक्षण करके आई गोल चक्कर पृथ्वी का देख ऊपर लौट आयी कह रहे हैं चिन्तितों से हम तुम्हारे साथ है दो घडी घडियाली आंसू रोने में भी कोई बात है मेरे पी एम कह रहे मैं कुछ करोड़ों दे रहा बदले में बस अपने हिस्से कुछ