कश्मीर का दर्द
यूँ भी दरकती हुई एक दीवार रह गई
घर की खिड़की में अब दरार रह गई
कुछ कांच के टुकड़े और पत्थरों का बुरादा
इकठ्ठा होकर रेतों का संसार बन गई
बिखरती हुई ज़िन्दगी और चीखती हुई आवाज़
कुछ कुछ मिलाकर गुमनाम पुकार बन गई
तबाही का एक सैलाब ले उड़ा पूरे शहर को
बचा कुछ नहीं बस शिव की चौपाल रह गई
तुझसे कौन लड़ सकता है कुदरत; हमें नहीं पता
पर नाकाम तो यहाँ की राज्य सरकार रह गई
बेशर्म है स्थानीय प्रशासन जो खोखले दावे करता है
पर केंद्र का त्वरित मरहम जीवन का द्वार बन गई
मारते थे जिनको पत्थर अपना रकीब मानकर
वो भारत की वीर सेना आज तारणहार बन गई
कहाँ है वो देशद्रोही यासीन मालिक और गिलानी
चूड़ियाँ पहनकर बैठें हैं और घाटी यहाँ बरबाद रह गई
झेलते हैं आपदा को क्यों मगर दहशत को झेलें
क्यों अब कश्मीर की धरती बग़दाद बन गई
अमृत का पान पीने कई सियासत दान आये
घटिया मानसिकता से नदी भी विषधार बन गई
कश्मीर का अस्तित्व भारत के संगठन से फलता है
अलगाववादियों की ज़हरीली सोच फिर लाचार रह गई
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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