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कच्ची सड़क , भीगा दरीचा.......

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कच्ची सड़क , भीगा दरीचा और ज़िंदगी बीत गई   बेसांस उनींदी याद से आज  कहानी जीत गई जुस्तजू गमगीन हैं और सदायें चुप ज़रा गुज़र बसर करते हुए ;ये जवानी बीत गई सुस्त मौसम सो गया , हवा कुछ नाराज़ सी इन फिज़ाओं के नशे मे ज़िंदगानी घिर गयी सरगुज़श्त हो रहे है हर नये से फैसले फासलों के दरमियां ये ज़ुबानी  बिक गयी अब नहीं होती है मेरे घर मे कोई खिड़कियां यूं अंधेरे की चिता मे रोशनी भी बुझ गई राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब' 

दर्द भी..........

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दर्द भी गुज़रती रात का सिला देता  है तमाम उम्र गु ज़ा रने की वजह देता है बेरुखी को हाथों से मल रहा है मौसम मुझे वो अंधेरे से  मिला देता है हर लम्हा खर्च हो रहा है आजकल शाम का मुकद्दर मुझे जला देता है    बड़े खूब थे मेरे यार हंसते थे मुझपे उनकी यादों का जमघट मुझे रुला देता है बिसरी बात को करूं याद तो भर आती हैं  वक़्त पलकों से कुछ बूंदें गिरा देता है होश मे हूँ मगर एक लम्बी बेहोशी है जज़्बातों का सूनापन मुझे बता देता है नशे मे तो दुनिया है मैं कहाँ हूँ जाम भी छलक कर मुझे दगा देता है यूं पुरानी ख़राशें हैं मेरे दरम्यान जीने का सलीका भी सज़ा देता है इस शहर की बेरुखी भी तब समझ आई हर शख्स  जब  सामने से नज़रें फिरा लेता है   राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब' 

जन्म का ये दिवस भी.....

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  जन्म   का   ये   दिवस   भी  , स्मरण   रहेगा   मुझे   भी   संवाद स्थापित नहीं हुआ  जो धन है अर्जित वही हुआ  ये शृंखला है त्रास की  बूंदें लगी मधुमास सी  है सहस्र साथी साथ के पर कहीं एकांत की छाया मे  जन्म का ये दिवस भी  स्मरण रहेगा मुझे   भी  आकांक्षाएं शोषित हुई  प्रतिकार को प्रेरित हुई  वनवास फिर श्री राम गये  रावण सी सृष्टि दिख रही   भगत जी शिवधाम गये  बस उसी अर्ध स्वप्न की बेला मे  जन्म का ये दिवस भी  स्मरण रहेगा मुझे   भी  ये रश्मियां असंख्य है  पर सूर्य कब तक दिव्य है  ये सदियों का संताप है  ध्वनि तेज़ करना पाप है  प्रबुद्ध सब चुपचाप हैं  ये राक्षसी पदचाप है  मैं स्वयंभू नहीं भिन्‍न इससे  कर रहा हूँ आत्म मंथन किसी बीहड़ पथ के तीरे  जन्म का ये दिवस भी  स्मरण रहेगा मुझे   भी  नीरस है रहती हर दिशा मैं स्वप्न दृष्टा कब रहा  जो स्नेह स्वाति जल रही  उनका ना मुझमे कुछ रहा  क्या शेष जीवन रह गया  अब शीत-श्वासें थक रही  जब ग्रीष्म क्रोधित मन हुआ    मन के तिमिर मे खोजकर   कुछ नव-विधा प्रकाश मैने