जन्म का ये दिवस भी.....
जन्म का ये दिवस भी ,
स्मरण रहेगा मुझे भी
संवाद स्थापित नहीं हुआ
जो धन है अर्जित वही हुआ
ये शृंखला है त्रास की
बूंदें लगी मधुमास सी
है सहस्र साथी साथ के
पर कहीं एकांत की छाया मे
जन्म का ये दिवस भी
स्मरण रहेगा मुझे भी
आकांक्षाएं शोषित हुई
प्रतिकार को प्रेरित हुई
वनवास फिर श्री राम गये
रावण सी सृष्टि दिख रही
भगत जी शिवधाम गये
बस उसी अर्ध स्वप्न की बेला मे
जन्म का ये दिवस भी
स्मरण रहेगा मुझे भी
ये रश्मियां असंख्य है
पर सूर्य कब तक दिव्य है
ये सदियों का संताप है
ध्वनि तेज़ करना पाप है
प्रबुद्ध सब चुपचाप हैं
ये राक्षसी पदचाप है
मैं स्वयंभू नहीं भिन्न इससे
कर रहा हूँ आत्म मंथन
किसी बीहड़ पथ के तीरे
जन्म का ये दिवस भी
स्मरण रहेगा मुझे भी
नीरस है रहती हर दिशा
मैं स्वप्न दृष्टा कब रहा
जो स्नेह स्वाति जल रही
उनका ना मुझमे कुछ रहा
क्या शेष जीवन रह गया
अब शीत-श्वासें थक रही
जब ग्रीष्म क्रोधित मन हुआ
मन के तिमिर मे खोजकर
कुछ नव-विधा प्रकाश मैने
अब जा रहा हूँ रिक्त सा
इस वर्षफल को छोडकर
जन्म का ये दिवस भी
स्मरण रहेगा मुझे भी
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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