कच्ची सड़क , भीगा दरीचा.......
बेसांस उनींदी याद से आज कहानी जीत गई
जुस्तजू गमगीन हैं और सदायें चुप ज़रा
गुज़र बसर करते हुए ;ये जवानी बीत गई
सुस्त मौसम सो गया , हवा कुछ नाराज़ सी
इन फिज़ाओं के नशे मे ज़िंदगानी घिर गयी
सरगुज़श्त हो रहे है हर नये से फैसले
फासलों के दरमियां ये ज़ुबानी बिक गयी
अब नहीं होती है मेरे घर मे कोई खिड़कियां
यूं अंधेरे की चिता मे रोशनी भी बुझ गई
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
Good blog. Padhkar khushi hoti hai.
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