बदस्तूर




टूटे हुए धागे से अब कोई माला नहीं जोड़ता
बिगड़ने से पहले कोई क्यों नहीं सोचता

मैं तो यूँ ही जिया हूँ दोस्तों की खातिर
सर्द रात की फ़िक्र होती तो लिहाफ़ नहीं छोड़ता

बहुत लोग हैं जो अपनी बात से जल्दी मुकर जाते हैं
मेरी फ़ितरत है कि मैं वादा नहीं तोड़ता

सच का इस कदर मैं ग़ुलाम हो चुका हूँ
कि चाहने पर भी झूठ से रिश्ता नहीं जोड़ता

अब बदस्तूर रास्तों  की ख़ाकें छान  रहा हूँ
नहीं तो मैं दीवारों मे अपना सिर नहीं फोड़ता

बड़ा अजब है कि लोग यहाँ कौड़ियों के लिए कत्ल करते हैं
क्या उन्हे उनका ज़मीर नहीं कचोटता

मैं समंदर के किनारे समेट रहा हूँ पलकों मे
अब अश्कों को गिरने से मैं नहीं रोकता

- राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब' 

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