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अटल तो अटल हैं


अटल जी को समर्पित मेरी कविता


अंशुमान अब लुप्त हुआ आज निशा के अंत में
श्वास शून्य हो गयी है आज जीवन तंत्र में
उस युगद्रष्टा के काल खंड में सत्य का वर्चस्व था
आज स्वर्णिम गीतांजलि है उनके स्मृति-वन में

मृत्यु तुम तो अटल हो, तुम्हे बड़ा गुमान है
किन्तु वो भी अटल थे, क्या तुम्हे अनुमान है
उनकी ओजस वाणियों का अजब ही एक ताप था
जिनके प्रस्फुटन से जगता आज हिंदुस्तान है

आज हृदय की श्वास नलियां करुण क्रंदन कर रही
अश्रुधारा बह चली है धरती वंदन कर रही
युग-पुरोधा, दिव्य वाचक, सर्वसम्मत राजनेता
वाक्पटुता, काव्य-शैली, मधुर व्यंगों का चहेता
आज जीवन-युद्ध के संग्राम में अविचल हुआ
दीप बुझकर भी यहाँ पर आज वो उज्जवल हुआ

काल के गर्भ में वो पथ निरंतर कर गए
देह को मृत्यु-समर्पण, दीर्घ अंतर रच गए
आज दर्पण में उनींदी नयनों को क्या देखना
इस सिहरती रात में चन्द्रमा क्या देखना

देखी अंतिम यात्रा की भावभीनी है विदाई
पंक्तियों में, रास्तों में आज भारी है रुलाई
संसृति  के मोह में तो बड़े बड़े डोल गए
आपके व्यक्तित्व को वो अंश भर भी छू पाई

धन्य है वो माता जिनकी गुदड़ी का वो लाल था
निष्कपट जीवन जिया और तेज रक्तिम भाल था
करूणा ले रही हिलोरें, सागर में आज उफान है
शक्तिपुंज के प्रणेता को कोटि कोटि प्रणाम है

जब प्रभाकर-लालिमा भी क्षीण होने लग रही
जब निशाचर रश्मियां विदीर्ण होने लग रही
सूर्य का अमिताभ लेकर सजल लोचन रो रहे 
चित्त के इस शांतिवन में चिरनिद्रा में सो रहे 
उस महामानव का देखो दिशाएं स्वागत करे 
जिसकी ओजस वाणियों से जल रहे अनगिन दिए 

रचनाओं के अद्भुत शिल्पी, नीतिशास्त्र के ज्ञाता हो
वीरों सी प्रखर वाणी और कोमल हृदय के दाता हो
अंतिम पथ पर जाते देखा, मन अब भी ये विस्मित है
चरणों में करुणामय हृदय से श्रद्धासुमन अर्पित है


-राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'






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खाली पन्ना

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