Thursday, December 27, 2018

अच्छा नहीं लगता....
















गुलाब सूख कर डाली से गिरे तो अच्छा नहीं लगता
हाथ अगर साथी से छूटे तो अच्छा नहीं लगता

मनमर्ज़ियाँ होती रही ताउम्र जब तक होश रहा
अब सोच पर बंदिशें लगना अच्छा नहीं लगता

जहाँ भर की थकान से घर बड़ा सुकून देता है
बस दीवारों का चटकना अच्छा नहीं लगता

मेरे सामने हज़ारों मंज़र तबाह हो चुके हैं
उस पर बेशर्म बारिश का बरसना अच्छा नहीं लगता

कितने लोग आये झूटी तस्सली देने यहाँ
बिखरे दिल को दोबारा कुरेदना अच्छा नहीं लगता

ऐसा नहीं कि जीना मुमकिन नहीं है तेरे जाने के बाद
मगर फिर भी इस तरह ज़िन्दगी जीना अच्छा नहीं लगता

हवाई तरंगों से संगीत का कुछ एहसास हुआ
मगर उस से निकले शोकगीत सुनना अच्छा नहीं लगता

सड़क पर बेसुध पड़ी लाश खून से सनी है
मदद के बजाय सुर्खिया बटोरना अच्छा नहीं लगता

ख़बरें भी आजकल कारोबारी लबादा ओढ़े रहती हैं
यूँ हर बात को तोडना मरोड़ना अच्छा नहीं लगता

ये भी बुज़दिली है कि उँगलियाँ दूसरों पर उठाओ
और खुद के सामने रखा आइना अच्छा नहीं लगता

सह लेंगे काँटों को  कुछ देर, खूबसूरती के खातिर
पर गुलाब सूख कर डाली से गिरना अच्छा नहीं लगता

-  राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब' 

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