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सोचा हुआ हो जाए, ये हमेशा नहीं होता....



सोचा हुआ हो जाए, ये हमेशा नहीं होता
हर किसी का मन यहाँ एक सा नहीं होता

बहुत ख्वाब थे कि ज़िन्दगी बड़ी आसान सी होगी
मुश्किल से न गुज़रे, कोई दिन ऐसा नहीं होता

संभलकर बोलना और संभलकर चलना पड़ता है
जैसा हम सोचते हैं ज़िन्दगी का सफर वैसा नहीं होता

लाख समझाया कि मेरी इरादों में हमेशा नेकी रहती है
इतना कहने पर भी उसको भरोसा नहीं होता

अभी शुरू में ही तकलीफों की झलकियां दिख गई
मुझे कुछ दिन आराम मिले, वैसा नहीं होता

मैं तो अपनी अकलियत को फिर भी सुधार लूँ
पर उसके रवैये में बदलने का जज़्बा नहीं होता

अपने ही करम थे जो आजकल डरे सहमे रहते हैं
दूसरों की गलतियों का यहाँ मसला नहीं होता

- राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'




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खाली पन्ना

क्या लिखूं की समझ नहीं आता सारे नगमें हमसे किनारे हो गए फिर भी लिखता हूँ ये सोचकर कि ये सारे किस्से भी अब हमारे हो गए मेरी नज़रों में अँधेरा बंद था खोला तो जैसे उजाले हो गए उदासी भरी चहक है मेरे साथ उसी के अब हम हवाले हो गए सब हम से उम्मीद करते हैं सहारे की पर हम तो खुद ही बेसहारे हो गए ज़िन्दगी की भीड़ में मौत छुपती नहीं ज़िन्दगी के टुकड़े मौत के निवाले हो गए खानाबदोशी में जीते थे जो कभी हमारे साथ वो साथी भी अब दुनिया वाले हो गए दास्ताँ मेरी मैं खुद ही सुनता हूँ खली पन्नों के लफ्ज़ भी हमारे हो गए राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

तसल्ली

मिले इस तरह से कि कई ज़द खुलने लगी मुझे देखकर उनकी सूरत उतरने लगी लगाया नहीं था अंदाज़ा कि इतनी जल्दी मिलेंगे जब मिले तो पैरों की ज़मीन सिमटने लगी वो बुज़दिल हैं जो बिछड़ने पर रोते रहते हैं हमारे लिए तो ज़िन्दगी फिर से खिलने लगी किसी के होने से फर्क पड़ता था पहले अब बेफ़िक्र ये शख्सियत होने लगी तराशे थे कई पत्थर कि  हीरा नसीब होगा मिटटी के जिस्म की मिटटी निकलने लगी हमेशा दौर एक सा कहाँ  रहता है यार  इसी तरह अपनी भी किस्मत बदलने लगी रग़ों में खून का उबाल ज़रूरी है आजकल तभी तो हर बात पर चिंगारी भड़कने लगी बेहोश रहे और वक़्त की कीमत नहीं समझी इसलिए तो अब जिंदगी बोझ लगने लगी सोचते हैं कि हर अंधेरे के बाद रौशनी होगी कुछ इस तरह से मुझको तसल्ली होनी लगी - राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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