तसल्ली
मिले इस तरह से कि कई ज़द खुलने लगी
मुझे देखकर उनकी सूरत उतरने लगी
लगाया नहीं था अंदाज़ा कि इतनी जल्दी मिलेंगे
जब मिले तो पैरों की ज़मीन सिमटने लगी
वो बुज़दिल हैं जो बिछड़ने पर रोते रहते हैं
हमारे लिए तो ज़िन्दगी फिर से खिलने लगी
किसी के होने से फर्क पड़ता था पहले
अब बेफ़िक्र ये शख्सियत होने लगी
तराशे थे कई पत्थर कि हीरा नसीब होगा
मिटटी के जिस्म की मिटटी निकलने लगी
हमेशा दौर एक सा कहाँ रहता है यार
इसी तरह अपनी भी किस्मत बदलने लगी
रग़ों में खून का उबाल ज़रूरी है आजकल
तभी तो हर बात पर चिंगारी भड़कने लगी
बेहोश रहे और वक़्त की कीमत नहीं समझी
इसलिए तो अब जिंदगी बोझ लगने लगी
सोचते हैं कि हर अंधेरे के बाद रौशनी होगी
कुछ इस तरह से मुझको तसल्ली होनी लगी
- राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
Kuch to hai Seene me Jo is tarah nikal rha hai bhai
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