बेचराग होती हैं गलियां.......
बेचराग होती हैं गलियां, सभी दिल टूट गए कश्मकश का दौर है, सारे साथी छूट गए रुके फैसलों से ज़िन्दगी नहीं चला करती है और भी ना जाने कितने मंज़र रुक गए मिला था कुछ अधूरा सा अपनापन कभी विदा होकर साथियों से, सारे जज़्बात छूट गए ठिकाना बमुश्किल से घास फूस का ही बनाया था वो बड़ी बेदर्दी से मेरा घर फूंक गए पाया कि अक्ल में समझदारी का अकाल है और दिमाग की नसों के शैवाल सूख गए ये अश्क भी समंदर का अक्स होते हैं ज़िन्दगी के इस मुहाने पर इन्ही में डूब गए ग़लतफ़हमी थी कि होशियारी आ गयी है हमको अनाड़ी ही थे जो हर मामले में चूक गए सांस के चलने से ज़िन्दगी का एहसास हुआ गनीमत है कि मरने की खैर खबर पूछ गए आसां नहीं हैं इस तरह हर पल को समेटना लम्हे भी देखो अब वक से रूठ गए वो मेरे आशियाने में आने से कतराते हैं और दुश्मनो की महफ़िल में बहुत खूब गए अब हालात पर अपने उबकाई से आती है सचमुच इस ज़िन्दगी से हम इतना ऊब गए राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'