पता नहीं...................


पता नहीं


रंगों से भरी सुबह में हम शामिल हैं
मेरी ज़िन्दगी की शाम का कोई एतबार नहीं

ज़रा जोड़ दो टुकड़ों को कहीं हंसी गिर जाएगी
चुप्पी साधे बैठे हो कोई आवाज़ तो फिर आएगी
मगर ये सोचने में क्या रखा है
आखिर हमें किसी ख़ुशी का इंतज़ार नहीं

जुबां पर एक ही फ़साना है
टूटा फूटा कोई दिल का तराना है
कि समेटेंगे राज़ ज़िन्दगी के
क्योंकि हमारा कोई राजदार नहीं

फर्श पर खून से लिप्त है सपना
खौलेगा खून पर उसे संभाल कर रखना
न जाने कब कहाँ कोई रोशनी मिले
हम ज़ख़्मी ज़रूर हैं पर लाचार नहीं

छोड़ो बेवक़्त की आरज़ू हमने पाली है
यहाँ उजली धूप में भी सुबह काली है
पता नहीं किस ओर हमारा संसार है
पर हम सोचते हैं कि हमारा कोई संसार नहीं


राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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