Monday, February 25, 2019

बेस्वाद...


गिरे गलियों मे खून के छींटे
और कटें है दरखतों में बगीचे

आवाज़ें नहीं ये दर्द के फव्वारे हैं
या बन गयी हैं मुकम्मल चीख़ें

मेरा तो मकान तेरे घर के सामने था
पर दिलों की गर्द  है कि सरहदें खीचें

बीते वक़्त का लौटना आख़िर क्यों नहीं होता
रोज़ यही सोचकर माथे को पीटें

कल बड़ी शिद्दत से हमसे हाथ मिलाया
आज थोड़ी सी तरक़्क़ी से बदल गये तरीके

मेरे सामने चेहरे पर मुस्कुराहट रहती है
पीछे से तब्बस्सुम को गुस्से से भींचे

खवाब बड़ा देखा आसमान बनाने का
पंख कतरने पर आ गये हैं नीचे

जितनी तेज़ चला मैं गुनाहों की राह मे
उतना ही ज़िंदगी रह गई पीछे

क्यों बेस्वाद सा ये ज़िंदगी का सफ़र है
क्यों हर लम्हे लग रहे हैं फीके

राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'


Wednesday, February 20, 2019

गुच्छे


अभी तो सिर्फ़ ज़िक्र हुआ है
निगेहबानी तो बाद मे होगी

एक बूँद साँस अभी जन्मी है
ज़िंदगानी तो बाद मे होगी

ख़ुशामद करने मे ज़िंदगी बीत  गयी
मेहरबानी तो बाद मे होगी

इस ज़माने को भूलने की आदत है  मगर
निशानी तो याद मे होगी

घिरते रहे दर्द मे खामोश होकर
मुंहज़ुबानी तो बाद मे होगी

अल्फाज़ों के गुच्छे समेट रहा हूँ
कहानी तो बाद मे होगी

-राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'  

Monday, February 18, 2019

पुलवामा में शहीद हुए वीर सैनिकों को समर्पित....





















भाग -1

आज बदहवास सी फ़िज़ाएं हो रही है
मेरे शहर मे कितनी माएँ रो रही है

बड़े जोश से वतन का झंडा लिए जा रहे थे
आज उनकी शहादत पर दुनिया रो रही है

वो बुज़दिलों के हाथों से मारे गये इस कदर
कि सड़क भी अपने को खून से धो रही है

इन जवानों की लाशों मे वतनपरस्ती की खुशबू है
जो गद्दारों के सीने को चुभो रही है

आज इस कदर आँखे छलछला गयी
कि ग़म की नदी मे सबको डुबो रही है

मेरी नसों मे गुस्से का उबाल है
वो दहशत के दरिंदों को खोज रही है

अब नफ़रतों के सौदागरों के लिए
मेरी वतन की फ़ौजें तैयार हो रही हैं

तेरे धोखे का ए पाकिस्तान माकूल जवाब मिलेगा
अभी तो यहाँ पर हवायें लाशें ढो रही हैं

हर हिंदुस्तानी सरहद पर जाने को आमादा है
हर आँख तेरे खात्मे की बाट जोह रही हैं

भाग -2

ओ बुज़दिल और मक्कार पाकिस्तान------------------------- 

ये मत समझना कि हम चुप बैठ जाएँगे 
तेरे सीने पर इतने खंज़र चलाएँगे 

कि तू भी अपनी किस्मत को कोसेगा 
अपने ही हाथों से अपनी कब्र खोदेगा 

ये जवान हमारे हिंद की शान है 
इनके खून का हर एक कतरा देश का सम्मान है 

तेरे जेहादी इरादों को बर्बाद करेंगे 
तुझे मुफ़लिसी मे धकेल कर वार करेंगे 

तेरी हैसियत तो एक झूठे शैतान की तरह है 
तेरा नामो-निशान मिटेगा, तू ही इसकी वजह है 

तेरी मक्कारी के खेल की अब चिता जलेगी 
पूरी दुनिया मे तुझे छुपने की जगह नहीं मिलेगी 

याद रखना कि हमारा खून अभी सूखा नहीं
दिल दुखी है ,उदास है, मगर हौसला टूटा नहीं 

मत सोचना कि हम कदम पीछे हटाएंगे 
तेरे हर एक आतंकियों का सिर धड़ से गिराएँगे 

अभी तो अपने जवानों ने दी अपनी बलि है 
इन महान शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि है 

तू ना अब सो पाएगा,कि हराम तेरी नींद करेंगे 
अब कराची से लाहौर तक हम जय हिंद जय हिंद करेंगे 

- राजेश बलूनी ‘प्रतिबिंब’

Wednesday, February 6, 2019

खुशफहमी...

















तेरी यादों के भंवर में कुछ ऐसे उलझे
कि ज़िन्दगी के कई मसले सुलझ नहीं पाए

बेहतरी के लिए ही कुछ सलाहें दी थी
पर  दिमाग के फितूर उसे समझ नहीं पाए

कुछ बनने का सपना तो बहुत देखा तूने
कुछ करने के वास्ते हड्डियाँ खरच नहीं पाए

तय किया था कि मुकाम पाने तक रफ़्तार नहीं थमेगी
मेरी नालायकी से हम मंज़िल तक पहुंच नहीं पाए

कितने लोग समझदारी का तमगा लिए फिरते हैं
मगर बेवकूफों की भीड़ से निकल नहीं पाए

ऊपर ऊपर से तो सबकी ख़ुशी का नज़ारा देखता हूँ
मगर दिल तक किसी के उतर नहीं पाए

पहले परवाज़ की तैयारी तो चिड़िया ने कर ही दी थी
बस नए परिंदे ज़हन में हौसला भर नहीं पाए

मैं भी क्या करूँ कि आदत हो चुकी है सुस्त रहने की
इसीलिए तो ज़िन्दगी में कुछ कर नहीं पाए

राजेश बलूनी  'प्रतिबिम्ब'

मेरी सुबह को लोग रतिया समझते हैं ....

मेरी सुबह को लोग रतिया समझते हैं  पेड़ की शाखो को वो बगिया समझते हैं  कद्र कोई करता नहीं गजलों की यारों  सब खिल्ली उड़ाने का जरिया समझते हैं...