Wednesday, February 20, 2019

गुच्छे


अभी तो सिर्फ़ ज़िक्र हुआ है
निगेहबानी तो बाद मे होगी

एक बूँद साँस अभी जन्मी है
ज़िंदगानी तो बाद मे होगी

ख़ुशामद करने मे ज़िंदगी बीत  गयी
मेहरबानी तो बाद मे होगी

इस ज़माने को भूलने की आदत है  मगर
निशानी तो याद मे होगी

घिरते रहे दर्द मे खामोश होकर
मुंहज़ुबानी तो बाद मे होगी

अल्फाज़ों के गुच्छे समेट रहा हूँ
कहानी तो बाद मे होगी

-राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'  

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