गुच्छे
अभी तो सिर्फ़ ज़िक्र हुआ है
निगेहबानी तो बाद मे होगी
एक बूँद साँस अभी जन्मी है
ज़िंदगानी तो बाद मे होगी
ख़ुशामद करने मे ज़िंदगी बीत गयी
मेहरबानी तो बाद मे होगी
इस ज़माने को भूलने की आदत है मगर
निशानी तो याद मे होगी
घिरते रहे दर्द मे खामोश होकर
मुंहज़ुबानी तो बाद मे होगी
अल्फाज़ों के गुच्छे समेट रहा हूँ
कहानी तो बाद मे होगी
-राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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