भ्रष्टाचार =कॉंग्रेस भाग-1
क्या हो रहा है यहाँ पर सभी बेख़बर हैं
ज़िंदगी भी हो रही किसी तरह बसर है
एक दूसरे पर खींचते हो दो धारी तलवारें सब तुम
आदर और सम्मान लेकिन रहता अब काग़ज़ पर है
छींटाकंशी की आदत भी बड़ी ही निराली है
दूसरों पर हो तो ठीक है , पर खुद पे हो तो ग़लत है
नशे से भरे शहर हैं , धुएँ के उड़ते लबादे
नौजवानो ने इस तरह उड़ा दी अपनी फिकर है
आदमी तो क्या है ये तो घरों की सड़ती कहानी
क्या करें जो व्यवस्था हो रही इतनी लचर है
भ्रष्ट है ये आचरण हमे इतना ज्ञात है
पर हमेशा से वही खोखला मजबूर डर है
त्रासदी तो हो चुकी है देवभूमि के घरों मे
चीखता है मौन रूदन , सूखते आँसू नज़र है
वाह मेरे प्रशासन की महिमा , टुकड़े कुछ पकड़ा गये
राजनीति है ज़रूरी , फिर वो चाहे लाशों पर हैं
मसले ये नहीं कि भ्रष्ट व्यवस्था , महंगाई की मार है
बस धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता का मुद्दा ही प्रबल है
हे मेरे मंत्री बहुगुणा , गुण बहुत है तुम पे माना
ये तुम्हारी चालक लोमड सोच अब तो शीर्ष पर है
थक गये हैं , पक गये हैं , नागरिक भी तुमसे(कॉंग्रेस) अब तो
एक नया संग्राम तुमको हराने को तत्पर है
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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