आगाज़
अभी गुज़रने से कोई मंजिल पास आएगी
अपनी हकीकत की दास्ताँ सबको आज सुनाएगी
चलने का सिलसिला लगातार बनाए रखा था
तभी जल्द ही सारी मुश्किलें छंट जाएंगी
बेहोश मन का एक सिरा कई ख्याल बुनता है
और कुछ उल्टा-सीधा हुआ तो सांस पर बात आएगी
कंठ से निकले सुर भी मिश्री घोल रहे हैं
पाँव से निकली धुल भी कितनी राहें सजाएंगी
आक्रोश तो होगा ही जब हर कदम पर ठोकर लगी
मगर मुश्किलों के बाद ही तो मुस्कराहट आएगी
पेंच बहुत हैं कि खबरदार नहीं होता हूँ जिस्म से
मगर सच्ची जीत की खुशबू तो रूह से आएगी
कौन बिगड़े हुए ज़माने से मुंहजोरी करता है
अपनी किस्मत सही हुई तो इनको नानी याद आएगी
कर्मप्रधान है जीवन इसमें कोई शक नहीं
भाग्य भरोसे रहने वालों की तो लुटिया डूब जाएगी
आगाज़ तो कर चुका हूँ कामयाबी के सफ़र की
सच्चाई और हिम्मत मुझे मंजिल तक पहुंचाएगी
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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