Sunday, April 28, 2013

शामियाना



बेज़ार बातों से दिल यूँ खफा न हुआ
चला शराफत से हर कहीं मगर फिर भी रुतबा न हुआ

बारहा देखा है लम्हों को गुज़रते हुए
उस पर भी वक़्त हमसे रुसवा न हुआ

बहुत से बेदर्द ज़ख्म मिले हैं तकदीर से
फिर भी हमें इस से शिकवा न हुआ

कई खेमों में मिला था साझेदारी के लिए
रहकर भी साथ उनके , उनका न हुआ

ज़रूरत होने पर जुबां नर्म और बाद में मिर्च होती है
मगर कानों को मेरे कोई झटका न हुआ

कुछ लोग मिलते हैं हमसे अपना मुकाम पाने के लिए
लाख कोशिशों पर भी मतलब परस्तों का दिल अपना न हुआ

मैं कुछ नहीं जानता अपने वजूद के बारे में
मगर मैं चालबाजों के साथ रहकर भी बुरा न हुआ

जश्न  तो था मगर फीका ही रहा मौसम याद का
बहुत तैयारियों के बाद भी कोई जलसा न हुआ

कई पर्दों और चादरों  से सजा रखा था अपने घर को
मगर कोई भी रेशमी शामियाना न हुआ


राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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