निशां


धीमे से गुज़रे तो निशां दूर जाने पर थे
आज भी मेरे कदम लौट आने पर थे

हसरतें तो कई थी मेरे ज़हन में बेसबब
पर मेरे ख्वाब तो सिरहाने पर थे

हमें तकरीरें दी गयी अपना लहजा ठीक करने की
हम जो हर किसी के निशाने पर थे

ये गलत है कि मेरा ज़हन फरामोश है आवाम से
अरे हमारे भी सैकड़े क़र्ज़ ज़माने पर थे

गुम्बद की गोल नक्काशी और किलों के पथरीले रास्ते
रहने वाले चले गए बस यही अपने ठिकाने पर थे

नैनों से दरिया का उफान जब उठता है  कभी
लगता है कि ये  सारे अश्क पैमाने पर थे

दर्द से रिश्ता यूँ गहरा हो चला था
होश जब आया तो हम मयखाने पर थे


राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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