तस्वीर
मंजिलों की तलाश में इधर -उधर भटकता हूँ
क्या है मेरी हकीकत इसी सोच में आजकल रहता हूँ
ग़मगीन चेहरा और गहरी उदासी
ज़रूरत है आंसुओं की ज़रा सी
ऐसे ही एहसास अब दिखाकर चलता हूँ
तकल्लुफ़ भरा ये मंज़र मुझसे बिछड़ता नहीं
मेरा ज़मीर अब मुझसे लड़ता नहीं
कि आजकल मैं झूठ के नकाब पहनता हूँ
एक रंग से मैं कभी नहीं रंगता
हज़ारों से भी मैं नहीं बनता
क्योंकि मैं हर समय शख्सियत बदलता हूँ
दिमाग में कुछ था पर कहा कुछ और
कौन करेगा अब मेरी बातों पर गौर
कि मैं भी अब धोखे से बच निकलता हूँ
एक डिबिया काजल की अपने पास रखी है
उसी पर सभी की निगाहें लगी हैं
क्योंकि उसीमे अपनी तस्वीर रखता हूँ
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब '
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