खालीपन
आज खुश है दिल कि सब कुछ है
फिर किस बात की कमी है
शायद इस मुस्कुराते चेहरे के पीछे
ग़म भरे अश्कों की नमी है
मैं लौट कर ही इन आंसुओं को पोंछ पाऊंगा
पर अभी वक़्त की बहुत कमी है
नाराज़गी तो होगी ही जब बहुत इंतज़ार हुआ
आखिर वक़्त की सुइंयाँ भी कब थमी हैं
मैं क्या करूँगा इस शान-ओ-शौकत का
मरने के लिए काफी दो मीटर ज़मीं है
गर्म फिजाओं का आलम बड़ा सुकून भरा है
हैरान हूँ कि इस पर भी पत्तियों में शबनमी है
खालीपन है ज़िन्दगी में अब कुछ बचा नहीं
और जज्बातों में केवल बर्फ जमी है
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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