रहमत
जले चरागों से राहें तो बात बने
दो कदम चले राहों में तो बात बने
रोज़ सोचता हूँ कि अपनी तबीयत का ख्याल रखूँगा
ज़रा अपना दर्द बाँट लू तो बात बने
इन्तहा इस घडी की है जो खाली है
ज़िन्दगी अगर भरी हो तो बात बने
सुर्ख रंग बह रहे हैं मेरी आँखों के दरम्यान
काली स्याह से दास्ताँ हो तो बात बने
मुह्ज़ुबानी बहुत हुई किसी को सहारा देने की
असल में अगर कोशिश हो तो बात बने
एक मूरत मंदिर में है , एक मन के दर पर है
कहीं से भी आए लेकिन खुदा आए तो बात बने
मुट्ठियों में क़ैद है कई क़तरे दुआओं के
खुदा ज़रा इसे खोले तो रहमत की सौगात बने
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'
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