Monday, March 11, 2013

रहमत



जले चरागों से राहें तो बात बने
दो कदम चले राहों में तो बात बने

रोज़ सोचता हूँ कि अपनी  तबीयत का ख्याल रखूँगा
ज़रा अपना दर्द बाँट लू तो बात बने

इन्तहा इस घडी की है जो खाली है
ज़िन्दगी अगर भरी हो तो बात बने

सुर्ख रंग बह रहे हैं मेरी आँखों के दरम्यान
काली स्याह से दास्ताँ हो तो बात बने

मुह्ज़ुबानी बहुत हुई  किसी को सहारा देने की
असल में अगर कोशिश हो तो बात बने

एक मूरत मंदिर में है , एक मन के दर पर है
कहीं से भी आए लेकिन खुदा आए तो बात बने

मुट्ठियों में क़ैद है कई क़तरे दुआओं के
खुदा ज़रा इसे खोले तो रहमत की सौगात बने


राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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