Wednesday, March 20, 2013

उम्मीदें


एक बुझती हुई चिंगारी को हवाएं चिराग बना देती हैं
वीरान रहता है जो चमन उसे कलियां बाग बना देती हैं

बिखरी हैं जो पंखुड़ियां मिट्टीं मे कंकड़ बन कर
पसीने की दो बूंद उन्हे गुलाब बना देती हैं

झोंका सा कुछ आ गया कहीं पर कभी तो
फ़िज़ाएं उसे अपनी अदायगी से अज़ाब बना देती हैं

उजली सी किरण सुबह की निकलती है कहीं पर तो
वक़्त की सुइयां उसे आफताब बना देती हैं

कुछ पन्ने खाली होते हैं ज़िन्दगी की कहानी में
मगर लम्हों की दास्तान उन्हे किताब बना देती हैं

कई हसरतें दिल में यूं ही बस जाती है
उनको पाने का जुनून उन्हे ख्वाब बना देती हैं

अपने खराब वक़्त पर अफ़सोस कभी मत करना
सब्र और हिम्मत उसे लाजवाब बना देती हैं

जब भी कभी चुप्पी घर करने लगे दिल में
एक छोटी गुफ्तगू उसे आवाज़ बना देती हैं

कभी कभी ज़िंदगी का साज़ बेसुरा हो जाता है
पर उम्मीदों की सरगम उसे नया राग बना देती हैं

राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब '

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