खुश्क दिन



बदलते हालातों का जायजा लेंगे
कुछ यूँ अपने जज़्बात रखेंगे

पाँव पर छालों ने पूरी परत को उखाड़ा
वक़्त बेवक़्त हम मरहम बनेंगे

जलन होती है कि  नालायकों को भी कामयाबी मिली
अब हम भी ज़रा नालायक बनेगे

खुश्क दिन हो गए गर्म मौसम के साथ
कोई बात नहीं अब झरने बरसेंगे

क्या कहूँ कि दूर हूँ ज़िन्दगी की हकीकत से
अब मौत के सपने को साथ रखेंगे

पँख लग गए हैं इरादों में तो लगने दो
इन्हें बाँधने के लिए रस्सी तैयार करेंगे

रुको अभी ख़त्म नहीं हुआ है यादों का दौर
कभी-कभी हम भी यादों को याद करेंगे

राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

Comments

Popular posts from this blog

खाली पन्ना

अब रंज नहीं किसी मसले का ......

नया सवेरा