Monday, March 11, 2013

खुश्क दिन



बदलते हालातों का जायजा लेंगे
कुछ यूँ अपने जज़्बात रखेंगे

पाँव पर छालों ने पूरी परत को उखाड़ा
वक़्त बेवक़्त हम मरहम बनेंगे

जलन होती है कि  नालायकों को भी कामयाबी मिली
अब हम भी ज़रा नालायक बनेगे

खुश्क दिन हो गए गर्म मौसम के साथ
कोई बात नहीं अब झरने बरसेंगे

क्या कहूँ कि दूर हूँ ज़िन्दगी की हकीकत से
अब मौत के सपने को साथ रखेंगे

पँख लग गए हैं इरादों में तो लगने दो
इन्हें बाँधने के लिए रस्सी तैयार करेंगे

रुको अभी ख़त्म नहीं हुआ है यादों का दौर
कभी-कभी हम भी यादों को याद करेंगे

राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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