Wednesday, March 27, 2013

आबो-हवा



इस शहर का माहौल भी बडा अजीब है
हर कोई है दूर खुद से मगर मायूसी के बड़ा करीब है

बीमार अहसास है सबके घरों में
ज़िन्दगी हर किसी की सुस्त पड़ी है
छोटी सी लगती है ये दुनिया मगर
इसकी परेशानियाँ बहुत बड़ी है
हर किसी का यहाँ पर अलग-अलग नसीब है

जली जा रही हैं साँसें सबकी
ज़िन्दगी से मगर कोई दोस्ती नहीं है
होश में रहकर भी जागते नहीं हम
ये कैसी शख्सियत है जो बोलती नहीं है
कि सोच से हम अपनी कितने गरीब हैं

रहगुज़र की तलाश में भटकते रहें हैं
पर सुकून को कोई भी ढूंढता नहीं 
सभी पड़े हैं अपनी ही धुन में
और कोई भी किसी से जुड़ता नहीं
हर कोई दूसरे को मानता रकीब है

लहजा तो अपना बदल भी दिया
पर शिकायत को अपनी बदला नहीं
घूमते  रहे हो आबो-हवा में
पर ग़ुलामी से कोई भी निकला नहीं
बस सपनों के सफ़र में दर्द की भीड़ है

इस शहर का माहौल भी बडा अजीब है
हर कोई है दूर खुद से मगर मायूसी के बड़ा करीब है


राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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