ज़िन्दगीनामा


ज़िन्दगी मैंने तुझसे बहुत कुछ है पाया
तेरी ही धुन पर ये सारा गीत है बनाया

धूप के क़तरे का निशाँ ढूंढता था
खोई मंजिल का धुआं ढूंढता था
पर मिला घने अँधेरे का साया

छाँव की चाशनी मिलती तो बात थी
फ़लक से रोशनी गिरती तो बात थी
मगर यादों ने दिल को कड़वा बनाया

उखड्ती हुई एक आवाज़ आई
दिलों के दरों की वो एहसास लाई
उसी में तेरा गीत मैंने है पाया

किस्सों के पन्ने भी उड़ से गए हैं
बेदर्द साए भी जुड़ से गए हैं
उन्ही के ग़मों ने हमें है सताया

टूटी खिड़की से जब हम देखते हैं
धूलों की बारिश में दिन खेलते हैं
ये मौसम न जाने कहाँ से है आया

लहर जो ख़ुशी की आगे बढ़ी थी
मगर उसके आगे अश्कों की झड़ी थी
उसी वक़्त आगे अँधेरा था छाया

बूदों के पैमाने को पीते गए हम
ख्वाबों के ज़ख्मों को सीते गए हम
ये सोचते हैं हमने यहाँ क्या लुटाया

न रंगों की रुत है न नरमी का मौसम
हुआ बाग़ों के घर में कलियों का मातम
हर एक फूल को राह से जब हटाया

वक़्त जो गुज़रा था कल की सुबह से
यहाँ रात आई उसी की वजह से
मेरे दर्द का घेरा उसने बढाया

कहीं गलियारों में मेरी परछाई सूखी है
वहीँ की दीवारों में तन्हाई रुकी है
उसी ने मेरे दिल में घर है बनाया

राजेश बलूनी ' प्रतिबिम्ब '



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