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ढकोसला



मुझे आजकल खुद की बड़ी ज़रूरत है
इसीलिए खुद के लिए बहुत ज्यादा फुर्सत है

एक गीत लिखता हूँ खुद के लिए
बाकी लोगों के लिए अभी वक़्त है

मौसम आज का बड़ा जानलेवा है
ठंडी साँसों में भी धुंए का ज़िक्र है

दूसरा कोई सोचे या नहीं सोचे कोई गिला नहीं
मगर मुझे तो अपनी बड़ी फ़िक्र है

मुलायम भी रहा लम्हा मेरे लिए कई बार
मगर अब तो इसके इरादे भी सख्त हैं

मुंह के सामने पड़े थे कई निवाले
मगर खाने में हम बड़े सुस्त हैं

कोई उठा दे उम्मीदों का बोझ बड़ा भारी है
उठाने में मेरी हालत बड़ी पस्त है

न टहनी है न कोई फूल ही खिला है
मेरे दरीचे मे अब सूखा हुआ दरख़्त है

लोगों से खूब लड़ता हूँ जब मेरे साथ गलत हुआ
आखिर मुझमे भी बची हुई थोड़ी  हिम्मत है

मैं बड़ा बेशर्म और खुदगर्ज़ हूँ ये पता है मुझे
मगर कोई दूसरा कहे तो वो मेरे लिए बेगैरत है

बहुत ढकोसला कर लिया कि अपनी बड़ी इज्ज़त है
मगर क्या करूँ मेरी ज़िन्दगी अब बेईज्ज़त है

राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

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मिले इस तरह से कि कई ज़द खुलने लगी मुझे देखकर उनकी सूरत उतरने लगी लगाया नहीं था अंदाज़ा कि इतनी जल्दी मिलेंगे जब मिले तो पैरों की ज़मीन सिमटने लगी वो बुज़दिल हैं जो बिछड़ने पर रोते रहते हैं हमारे लिए तो ज़िन्दगी फिर से खिलने लगी किसी के होने से फर्क पड़ता था पहले अब बेफ़िक्र ये शख्सियत होने लगी तराशे थे कई पत्थर कि  हीरा नसीब होगा मिटटी के जिस्म की मिटटी निकलने लगी हमेशा दौर एक सा कहाँ  रहता है यार  इसी तरह अपनी भी किस्मत बदलने लगी रग़ों में खून का उबाल ज़रूरी है आजकल तभी तो हर बात पर चिंगारी भड़कने लगी बेहोश रहे और वक़्त की कीमत नहीं समझी इसलिए तो अब जिंदगी बोझ लगने लगी सोचते हैं कि हर अंधेरे के बाद रौशनी होगी कुछ इस तरह से मुझको तसल्ली होनी लगी - राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'