जीवन-सार



क्या देखा क्या सुना सभी बेकार है
समय की धार है समय का वार है

रिक्त स्मृतियाँ मष्तिष्क में पड़ी हैं
उनका भी अपना एक संसार है

बुझते दिए हाथों की ओट से जल गए
कई प्रकाशों से जीवन चमकदार है

बेलगाम रात या फिर लड़खड़ाती सुबह
रोज़ जब दर्द हो तो इन्ही का इंतज़ार है

पथ के साथी लक्ष्य से भटक चुके हैं
उन्हें गंतव्य में लाने को हम तैयार हैं

कई वर्षों से सुप्त हो चुकी थी शिराएँ
अब व्यथित नसों में रक्तरंजित धार है

विचलित है मन की व्यथाएं रोज़ भी
कर्कश है समय कभी , कभी मधुर रसधार है

चिंता , प्रसन्नता ,सुख और दुःख की बूटी रहेगी
अंततः समझ आया यही जीवन -सार है

राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'

Comments

Popular posts from this blog

खाली पन्ना

अब रंज नहीं किसी मसले का ......

नया सवेरा