एक शाम..............
इस शाम की महफ़िल में एक और तरन्नुम गा लिया
दाद देते हैं की शायरी की सब ,पर हाल-ए-दिल छुपा लिया
चुभती हुई ख़ामोशी नज़रों में भी भर गई है
बातों की एक रोशनी को हमने बुझा दिया
लफ्ज़ जुबाँ पर आने से यूँ टूट रहे हैं
कि उनकी बेबसी को भी दिल में दबा दिया
कितने वक़्त के साए हमारे पास हैं अब
ख़त्म हो गया वो दौर जो ज़िन्दगी ने भुला दिया
आँखों में जलते हैं सपनों के गलियारे
बेबसी ने ज़िन्दगी से सपनो को हटा दिया
क़तरा - क़तरा एक हँसी की बूँद कहाँ है
हमने तो मुस्कुराहटों को भी रुला दिया
बहुत से अँधेरे बिखरी हवाओं में उड़ भी गए
रात के धुएँ ने हमको ये बता दिया
धुल पड़ी है उन बेघर अरमानों पर भी
जिनके तिनकों से बने घर को हमने गिरा दिया
राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब '
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