ये गीत........
हंसी का गुबार निकले तो भी मज़ा नहीं आता क्यों तेरे चेहरे से ये ग़म चला नहीं जाता कोशिशें बहुत हैं कि किसी तरह तेरा दर्द बाँट लूँ मगर अपने जज़्बात को मैं फिर जता नहीं पाता बेखबर हैं लोग कि मुझे तेरी फ़िक्र है बहुत मगर तू बेखबर रहे ये मुझसे सहा नहीं जाता तेरे मेरे दरम्यान कुछ बातें तो अनकही रहेंगी यूँ ही हर बातों को हमेशा कहा नहीं जाता रात बेरात ज़िन्दगी उलझी है किसी कश्मकश में जब तक कि किसी सवेरा का पता नहीं आता वो लम्हा भी बेरंग और खाली सा लगता है मुझे जो लम्हा तेरा चेहरा दिखा नहीं जाता कभी न कह पाउँगा तुझसे ये अपने जज़्बात तू अगर समझ ले तो ये गीत लिखा नहीं जाता राजेश बलूनी 'प्रतिबिम्ब'